प्रेम
प्रकृति से मिला मानव को
शाश्वत प्रेम का उपहार
प्रेम केन्द्र है मानव जीवन का
तोड़ता है यह अंहकार
प्रेम अनन्त है अमृत है
यह जीवन को जोड़ता है
जब टूटती है आश प्रेम की
अहंकार शेष रह जाता है
प्रेम केवल एक संबंध नहीं
यह तो चित्त की एक दशा है
प्रेम एक घटना है जो
चेतन के तल पर घटती है
प्रेम और अहंकार दो ध्रुव एक है
एक जोड़ता है दूसरा तोड़ता है
अहंकार सीमा है मृत्यु का
प्रेम अनन्त है परमात्मा है
प्रेम में हिंसा नहीं हो सकती
मिल्कियत में हिंसा होती है
उससे वह पैदा होता है
दोनों प्रेम का दुश्मन है ।
मालिक बनने की चेष्टा से
प्रेम ही टूट जाता है
पति-पत्नी में इसी लिए
प्रेम नहीं हो पाता है ।
संबंध से प्रेम नहीं होता
प्रेम में संबंध रहता है
प्रेमी के पास होने से भी
प्रेम नहीं हो सकता है
दो प्राण एक नहीं हो सकते
दो अणु मिलकर एक नहीं होते
भय से ईर्ष्या पैदा होती है
ईर्ष्या की चिता पर प्रेम चढ़ता है ।
जहां ज्ञान की पहुंच नहीं है
वहां प्रेम चला जाता है
प्रेम की प्रेरणा से ही तो
कर्म जन्म लेता है ।
प्रेम संबंध की सुगंध है
यह देना है लेना नहीं
प्रेम दान है मांग नहीं
देना आनंद है पाना नहीं ।
प्रेम एक आकांक्षा है जो
मिटने को राजी होता है
वही एक हो सकता है
प्रेम एकता खोजता है
प्रेम जीवन के भीतर स्वयं
एक जलता हुआ गोला है
फिर एकान्त में प्रेम का
दीया जलता रहता है ।
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