फागुन ( कविता )
कोयल कुक उठाए पैड़ो पर ,
मलय पवन बहने लगा ,
गुनगुना रहे भ्रमण के दल ,
पराग पवन में उड़ रहा ।
झड़ गये जीर्ण पीले पत्ते ,
आम्र मंजर चमकने लगे ,
झड़ रहे पलाश के फूल ,
बसंत आया फागुन लाया ।
पतझड़ था जीवन वसंत में ,
प्रेम का अंकुर फूट गया ,
प्रेम दिवस मना शांति से ,
फागुन सबको बौरा गया ।
वसंत की शर्मीली आंखें ,
फागुन में बाबरी बन गयी ,
प्रेम सबमें उन्माद फैलाया
फागुन उत्तेजित कर दिया ।
शांत था प्रेम रात में ,
प्रातः फागुन जगा दिया ,
जो कुछ छिपा था दिल में ,
फागुन उसे लुटा दिया ।
फागुन के मौसम में ,
होली की मस्ती छायी ,
देख छिटकी चांदनी ,
मचल उठी तरुणाई ।,
मुंह लाल गुलाबी आंखें ,
हाथों में लिए पिचकारी ,
कपड़ों पर रंग के छींटे हैं ,
बिन बात मुस्कुरायी प्यारी ।
घर-घर करती धमाल ,
निकली बासंती टोली ,
मन बहके , तन लहके ,
दिलों में मद की मस्ती छायी ।
मन में अबीर - गुलाल ,
यौवन ने ली अंगड़ाई ,
महुए के मद में झूलती ,
लड़खराती आई होली ।
रात रानी के संग में ,
गुलमोहर खेले होली ,
जिसके पिया परदेस बसा ,
वह किससे खेले होली ?
टिप्पणियाँ