उठ रहा धुआं


      उठ  रहा  है  धुंआ , कहीं  आग   छिपी  होगी।
      मत   कुरेदो   उसको , अंगार  निकल  आएगा।
         
      अकूत  धन  है  जहां ,  वहां  पाप  छिपा होगा।
      ईश्वर की स्वर्ण मुकुट में,काला धन छिपा  होगा।

      उल्टी धारा बह रही , घातक उद्देश्य छिपा  होगा।
      देख अन्ना का अनशन शैतान भी उपवास करेगा।

      भ्रष्टाचार  आंदोलन  में , भ्रष्ट नेता  छिपा  होगा।
      मद्य  निषेध आंदोलन ,  पीने  वाला  ही  करेगा।

      रुपए की उड़ रही गाडि्डयां , डॉलर छिपा होगा।
      छोड़ भरोसा नेता का, जन-जन को उठना होगा।

      सुलग  रही  है  आग ,  मशाल  जलाना   होगा।
      बारूद ढेर पर दुनिया , क्रांति कहीं  छपी  होगी।

      उठ  रहा  है  धुंआ , कहीं   आग  छिपी   होगी।
       
       



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