गौरी लंकेश
आसीन का महीना आया
मां गौरी दुर्गा बनकर आयी
रूप मानव का धर लंकेश आया
पूछा मेरा पुतला क्यों जलाया ?
मैं महान शिवभक्त चढ़ा दिया अपना सिर
क्यों नहीं जलाते पुतला महिषासुर का
अब चौककर महिषासुर घबराया
वह छद्म रामभक्त बनकर आया ।
मां गौरी मेरा नहीं है कोई कसूर
रामलीला वालों ने पुतला जलाया
मां गौरी की लेखनी बन गयी तलवार
छद्म रामभक्त महिषासुर ने स्वीकारा ।
मैंने ही रामभक्त गांधी को मारा
पनसारे, कुल वर्गी और दाभोलकर
क्षमा करो मां सबका मैं ही हूं हत्यारा
तुम गौरी लंकेश हो प्रतीक नारीशक्ति की
मैं प्रतिक हूं अधम आतंकवाद का ।
खड़ा रहो कातिल बताओ तो
तेरे बाजूओं में कितना बल है ?
कफन बांध शहीदों की कतार खड़ी है
अरे अब लेखनी में और शान चढ़ेगा
अक्षर शोला बनकर बरसेगा
बिन जलाए तुम स्वयं जल जाओगे ।
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