मैं और तुम
हम दोनों हैं पथ के पथिक
पर पथ अलग-अलग हैं
मैं हूं तीन तुम छः हो
रिश्ता बना छत्तीस का है
तुम विचरण करते रहते हो
सत्ता के गलियारों में
मैं अटक भटक रहा हूं
टूटी - फूटी झोपड़ीयों में
तुम सदा रहते शोषकों के साथ
मैं शोषण के खिलाफ लड़ता हूं
तेरी राजनीति यथास्थिति की
मेरी राजनीति है परिवर्तन की
तुम पूंजीवाद के पृष्ठपोषक
मुझे समाजवाद चाहिए
अपच के मारे तेरा बुरा हाल है
मुझे सूखी रोटी ही चाहिए
राजनीति शून्य विचारहीन
तुम लिखते विशुद्ध कविता
मिहनतकश की आवाज बनती है
जनभाषा में मेरी जनवादी कविता
संघर्ष का पथ छोड़कर तुम
खड़े हो गुनहगारों की कतार में
मैं खड़ा हूं भूखे नंगों के साथ
लड़कर मरने वालों की कतार में
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