भौतिकवाद ( कविता )
कौन कहता है भौतिकवाद
दर्शन है पश्चिम का ?
जब चलना नहीं सीखा था
भारत ने ज्ञान दिया वेदों का
जब वेदों की बदली छायी
उठा था धुआं यज्ञों का
हिंसा का तांडव नृत्य हुआ
घोर तिमिर छाया भ्रम का ।
छिटकी थी बिजली नग में
तब लोकायत दर्शन का
गुरु बृहस्पति ने ज्ञान दिया
मानव को भौतिकवाद का ।
बेकर ने आधुनिक रूप दिया
हाब्स - लॉक ने सींचा था
वैज्ञानिक भौतिकवाद के तरु पर
मार्क्सवाद का फूल खिला था ।
' मरनामेवे अपवर्ग : ' सुनकर
मोक्ष मारा-मारा फिरता था
' भीष्मभूतस्य देहस्य ' के स्वर ने
पुनर्जन्म का भ्रमण मिटाया था ।
' यावज्जीवते सुखम जीवेत '
का जीवन स्वर लहराया था
मौत का भय समाप्त हुआ
मानव जीवन मुस्कुराया था ।
भीषण और अजीत चार्वाकों ने
लोकायत का झंडा फहराया था
ऋषियों का षट् - दर्शन आया
उन पर चार्वाक दर्शन भारी था ।
मानवीय गुणों से पूर्ण पुरुष
अवगुण हीन तो ईश्वर है
परंतु ईश्वर के अवतारों को
दुर्गुणों में लथपथ देखा है ।
जब हृदय में ईश्वर आता है
तभी मानवता आती है
अब तक न तो मानवता आयी
और न परमात्मा आया है ।
मानवता है क्रांतिकारियों में
और है अनीश्वरवादियों में
क्रांति की आग जब जलती है
ईश्वर तब भस्म हो जाता है ।
कौन कहता है भौतिकवाद
दर्शन है पश्चिम का ?
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