अगेय की ओर ( रसवन्ती से )
गायक, गान, गेय से आगे मैं अगेय स्वन का श्रोता मन । (१) सुनना श्रवण चाहते अबतक भेद हृदय जो जान चुका है ; बुद्धि खोजती उन्हें जिन्हें जीवन निज को कर दान चुका है। खो जाने को प्राण विकल हैं चढ़ उन पद - पद्मों के ऊपर बाहु - पाश से दूर जिन्हें विश्वास हृदय का मान चुका है। जोह रहे उनका पथ दृग, जिनको पहचान गया है चिन्तन । गायक, गान, गेय से आगे मैं अगेय स्वन का श्रोता मन । (२) उछल - उछल बह रहा अगम की ओर अभय इन प्राणों का जल; जन्म - मरण की युगल घाटियाँ रोक रहीं जिसका पथ निष्फल । मैं जल- नाद श्रवण कर चुप हूँ; सोच रहा यह खड़ा पुलिन पर; है कुछ अर्थ, लक्ष्य इस रव का या 'कुल कुल, कल कल' ध्वनि केवल ? दृश्य, अदृश्य कौन सत् इनमें ? में या प्राण - प्रवाह चिरन्तन ? गायक, गान, गेय से आगे मैं अगेय स्वन का श्रोता मन । (३) जलकर चीख उठा वह कवि था, साधक जो नीरव तपने में ;...