अति का अंत
किसी भी नर, मनुजों के पार्श्व होता हद से अतिशय विभूति वही जर उसको करती बेसुध अति का अंत तय है भव में। किसी भी चीज का संसृति में मनुष्यों के राँध असीम होता वही ले जाते त्रुटिपूर्ण पंथ पे अति का अंत तय है भव में। किसी भी पदार्थ की गुरुता तभी रहेगी जब किंचित हो ए- परम होने पर न पणता अति का अंत तय है भव में। किसी भी वस्तु का लोक में गरजता से अनाचार होने पे आकृष्ट करती मिथ्या की ओर अति का अंत तय है भव में। किसी भी कोविंद को कभी हद से विपुल इल्म ही उसे ले जाती भूलयुक्त डगर पर अति का अंत तय है भव में किसी भी प्राणीवान जीव को गरज, ताल्लुक से निपट बल कतिपय को करती ए- विनष्ट अति का अंत तय हैं भव मे । अमरेश कुमार वर्मा जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार