मैं मीत हूँ


इस माटी की कुर्बानी हूँकार कर रही
मानवता तन्मयता का रसगान कर रही
मैं दीवाना बन चला इस रोधन में
मैं कर्तव्यों का भार लिए इस तोरण में

प्रफुल्लित हो रहा लहराती कुसुम
महिमामण्डित रही शैशव वितान कौसुम
मैं मीत हूँ , रग - रग में समा रहा 
मध्वक कशिश नहीं , अन्वय अनुराग

विकल विह्वलता तन रही इस खल
तमाशबीनों बनकर रह गया बस अज्वाल
इस कसाव कहर बाजार में , मैं विरक्ति
वैभव प्रासाद मदिरालय निखिल अनुरक्त

इस ईप्सा लिप्त का कगारे नहीं
मैं जितेन्द्र वसन्त में अवसाद नहीं
चित्मय वाग्मी उदात्त आलोक अङ्गीकार 
उद्धत ऊसर आतप रही अन्तर्विकार

आलोल सरिता वाहित अहर्निश मुझमें
प्रमोद प्रगाढ़ निर्विकार नूर मञ्ज़िल में
तप्त उर गात त्रस्त त्राहि-त्राहि क्लेश
कौतूहल आत्मविस्मृत सा क्यों हम अन्देश

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