विजय गूञ्ज
वीर भूमि की है धरोहर तीर्थ
विजय गूञ्ज हमारी कारगिल की
पथ - पथ करता पन्थी मेरी पुकार
शौर्य मेरी धड़कन के गङ्गा बहार
यौवन बढ़ चला सिन्धु में ज्वार
राष्ट्र एकता अखण्डता का करें हूँकार
आर्यावर्त स्वच्छन्द की मस्तष्क धरा मैं
इन्कलाब के रङ्गभूमि में मैं पला
तड़पन मेरी मां की एक पैगाम
चिङ्गारी मेरी अङ्कुरित बचपन आङ्गन के
उठा लूँ मैं शमशीर, धार वतन के
कर रहे कैलाश महाकाल का हूँकार
ललकार नहीं यह ख़ून तड़पन की धार
बने हम राष्ट्रीय शान्ति मानवीय सार
ध्वज कफन के सलामी करती मेरी धड़कन
हौसलों बुलन्दी के तमन्नाओं में मैं विलीन
कफन हो जाऊँ मैं शहादत ध्वज में
माङ्ग के थाल में मेरी कलित चिङ्गार
साँसों - साँसों में धड़क रहा व्यथा मेरी
पला माँ के वात्सल्य तड़पन करुणा मैं
जञ्जीर गुलामी के चन्द्रहास बनूँ मैं
मातृभूमि कुर्बानी के चनकते मेरी कलियाँ
मोल नहीं अनमोल है हमारी आजादी
इन्कलाब बोलियाँ की गूञ्जती शङ्खनाद
बचपन के आङ्गन में चिङ्गारी प्रज्ज्वलित
मोहब्बत सरताज के आँशू में विलीन
चाहत मेरी आँखों में बलिदानी दस्तूर
पनघट पानी गगरिया के दीवानें हम
वीर जवानों के कफन शोहरत में
अपने खून से मातृभूमि के दृग धोएँ
रुकना झुकना मुझे आता नहीं
प्राण माँ के चरणों में अर्पित आगे बढ़े
मैं समर्पित वन्देमातरम् की ललकार
राम नाम सत्य है नहीं कहना मुझे
आन - बान - शान प्रतिष्ठित मज़हब
पारावार नग नभ हिन्दुस्तान के सन्स्कार
सत्य चक्र गतिशील विजयी अग्रसर
राम कृष्ण महावीर बुद्ध अशोक की धरा
अविद्या दुःख से निर्वाण चौबीस तीलियाँ सार
यह है अशोक चक्र, धर्म, राष्ट्र का पैग़ाम
टिप्पणियाँ