अकेला



मैं अकेला  रह गया हूँ बस 
हताश भरी जिन्दगी व्यर्थ मेरे
पूछता नहीं कोई इस खल में
मोहताज भरी मैं अवलम्ब स्नेही के
फूट - फूट तीर रहा रूदन मेरी काया
स्वप्न धूमिल  मेरी असमञ्जस में

बावला हूँ विकल तन के तन्हां मैं
निन्दा तौहीन  मेरे  श्रृङ्गार  भरी
पथ - पथ समर्पण होती व्यथा मेरी
फिर भी अपरिचित - सी पन्थी मैं
गुलशनें दुनिया मुझे ठुकराते जाते
मैं अश्रु भरी तिमिर में  परिचित

इस शिथिल निभृत चेतन शून्य में
प्रतिध्वनि आह मेरी विस्मृत - सी
तृप्त अग्नि में करुण कहानी से
रस बून्द प्लवित होती अकिञ्चन 
घन  छायी  मेरे  हृदय  तम  में
झञ्झा कहर उठती मेरे तन में

घनीभूत दुर्दिन आँशू अन्दरूनी में
बन चला चिन्मय ज्योति अँजोर
गोधूलि रीझ से  भी  मैं  कलुषित
मैं  रहा बस मझधार कलङ्कित
विलम्बित नीरद उग्र - सी हिलकोरे
फिर भी मैं हूँ  पुलकित - सी उमङ्ग



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