क्या लिखूं मैं


अब  क्या   लिखूं   मैं ?
इस  मिथ्यावादी धरा  में
जग जग  को  लूट  रहा
हो रहा जहां विश्व कलङ्क

मनुज रहा दुर्जन की कगार
असभ्य  से  सभ्यता का विकास
फिर  क्यों जा  रहा  है  जहां ?
वापस  वहीं  समय  धरा  तक

क्या चाह  है  इस  मानव  का ?
जीवन जीना या न्योछावर कर देना
इस  जीवन  की  आडम्बर  में
अङ्गुश्तनुमा परिहास का मन्वन्तर

नापाक भर रही चित्त विक्षेप
चारुमयी हरीतिमा की एहतियात
रुग्णता का  व्याध  माहुर - सी
आप्यान की ही क्यों रही  प्रहाणि ?

अङ्गना - अङ्ग  सी मत्कुण अभञ्जन
व्यथा  विप्लव  प्लावन  पार्ष्णि
हौरिबुल  कुम्भिल  झङ्कृत  सार
उत्पीड़न भर देती अन्तःकरण में

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