श्रृङ्गार अलङ्कृत



प्राण तरुवर की अलङ्गित
अहर्निश स्पृहा मेरी लोकशून्य में
क्या व्युत्सगँ, क्यों भृश ब्योहार ?
इस तरस आहु कराह रहा

अपराग हूँकार क्यों जग को ?
तन मन व्यथा लिप्त वारिधि
मेरा जीवन तिमिर अनल्प - सी
होती मेरी क्यों व्याल हलाहल ?

प्राण पखेरू विप्लव प्रतीर
उर्वी छवि उदक शोणित में
घनवल्लभी तरङ्गिणी अरिन्द मम
गलिताङ्ग अविकल कुण्ठित मर्म

मेरी सौन्दर्य की असौम्य प्रहार
रङ्गमञ्च  भूधर  मुमूर्षु - सी उत्स्वेदन
जयन्त प्रच्छन्न त्रिविष्टप तपोवन में
अचुत्य नहीं निस्तेज कृश कलङ्क

जख्म भरी मेरी तुनक तृषित
दैहिक दुर्विनय प्रसूति भक्षित
श्रृङ्गार अलङ्कृत नीरस प्रतीत
मरघट में तुहिन पार्थक्य आँसू

तरणितनूजा अधरपल्लव गगनाङ्गन
मेघाच्छन्न  घड़ी - घड़ी  आच्छादित
अरण्यरोधन निस्बत बिछोह साध्वस
मेघकुन्तल  मरीचिमाली चक्षुश्रवा 

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