कल्पित हूँ


काल समय के चक्र में अम्बर
नव्य शैशव या कितने हुए वीरान
असभ्य सभ्य की सन्स्कृति में
नवागन्तुक जीवन चेतना धरोहर

इब्तिदा सभ्यता प्रणयन भूमि
तिलिस्मी सन्स्कृतियाँ अपृक्त सङ्गम
शैवाल  मीन  आदम  मानव
शनैः - शनैः जीवों की विस्तरण

बढ़ती मर्दुम शुमारी तुहिनाञ्शु
हरीतिमा जीवन पड़ रहा कङ्काल
विलुप्ति कगार बढ़ चले अकाल
बञ्जर समर में अनून कल विकल

विष   दञ्श   रश्मि   अश्मन्त
व्यथा पड़ी घूँटन में क्या प्रचण्ड ?
कँपी - कँपी धरा में रुग्णता क्यों ?
मुफलिस दोष का क्यों कलंक ?

विवश पड़ी, कल्पित हूँ, क्षणभङ्गुर में
ज्वाला व्यथित वात्सल्य बोझ जबह
दुर्भिक्ष से विकराल कञ्जर में क्षुरिका
निर्ममता  अनुशय  मशक्कत  तनाव 

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