भयभीत हूँ
नव्य जीवन सौगात धारा पैगाम
पुलिकित निराकार मदोन्मत श्रृङ्गार
तप उठी उस रोधन हृदय ठाँव
कल्पित कर रही मौन मयूख नाद
निर्झर चक्षु नीर अभिशप्त पड़ा
करुणामयी कलङ्क हुताशन धरा
प्रलय वसन्त में ओझल इम्तिहान
फिर क्यों धार नव्य वसन्त श्रृङ्गार ?
एक दीपक समाधि में निभृत भरा
प्रज्वलित पन्क्ति भग्नावशेष ईंढ
स्वयं विसर्जित तअम्मुक़ क़ियाम
अङ्कुर लहर मर्त्य - सा कलश
उच्छ्वसित - सी चिर अखण्ड स्नेह
स्मृति विलीन थी उस प्रकाश पुञ्ज
गर्वाग्नि धायँ - धायँ प्रज्ज्वलित
फूट पड़ी उज्ज्वल राग रति रूप
पथ - पथ मझधार पतझड़ सुरभि
भयभीत हूँ अनात्म भरी धृति - सी
इस कँटीली अबाध नश्वर प्रतीत - सी
मानो दे रहा सृष्टि त्रास टङ्कार
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