सूनसान


मैं आया सुनसान जगत से 
क्या करुणा - सी क्या काया ?
तुम उठे हो इस धरा से 
वाम से ही जलती है ज्वाला

बीत चुकी है इस पतझड़ में
 मृदु बसन्त की अन्तिम छाया 
इस कगारे जीवन में सब हम 
विचलित  मधुकर  मतवाला

धू - धू जलती इस तड़पने में
मोह का बलिण्डा प्रज्ज्वलित माया
 रख ले तुम कष्ट धैर्य अपना
 रहती सदा अखिल निर्जन प्याला

इस खण्हर - सी खादिम ख्याति
तिरोहित न्योछावर स्फुर्लिंग क्यारी 
तृण समर्पित क्षिति‌ क्षितिज में 
अकिञ्चन अगम्य अट्टहास अङ्गारा

अनवरत आतप उत्तेजित उज्ज्वल
इन्द्रधनुषीय शकुन्त उन्मुक्त कशिश
स्वर्ण - रश्मि  स्तब्धता - सी साखि
विह्वल व्याधि निरीह निशा गर्वित



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