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जुलाई, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आँगन

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बलाहक ऊर्मि का दहाड़ देखो रिमझिम - रिमझिम मर्कट दामिनी देखो कैसे बुलबुले भी उर्दङ्ग मचाती वों भी क्षणिक उसी में असि होती क्लेश विरह तनु अपने आँगन से क्या विशिखासन विशिख टङ्कार कोई कुम्भीपाक कोई विहिश्त में विलीन क्या दैव प्रसू ,  तड़पन सुने कौन ?  बूँद - बूँद खनक प्रतीर दृग धोएँ इस उद्यान इन्दु अर्क पथ में विलीन रैन मयूक वृन्द निलय नतसीर हाहाकार में मचली झाँझि मृदङ्ग सिन्धु गिरी मही तुण्ड में विस्मृत तरुवर नृत्य  ध्वनि में  झङ्कृत त्वरित घनीभूत क्लेश वृतान्त उगलती क्यों वेदना झङ्कृत बगिया विस्मित मैं भी आहत अहनिका खल प्रचण्ड कटाक्ष तड़ित शोणित वह्नि  में कौतूहल इन्तकाल द्विजिह्व में प्रच्छन्न त्रास - सी अली हूँ उद्भभिज तड़पन

सतरङ्गी

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सुबह-सुबह देखो सूरज आया इसकी कितनी है सुन्दर लालिमा नीलगगन सतरङ्गी स्वरूप - सी वसुन्धरा जीविका की परवरिश है खेत - खलियान भी है हरे भरें सुन्दर‌ - सुन्दर कितने मोहक छोटे - छोटे कलित कलियाँ तरुवर कुसुम मीजान कितने मृदु धरा खेचर कलरव कितने अनमोल कितने दिलकश पन्थ पङ्ख निराले उड़ - उड़के होते भूधर तस्वीर हौसले बुलन्दी के भी अभीरु आलम अर्णव की निर्मल कल - कल तरङ्गित  उस व्योम को करती नित नतशीर अन्तर्ध्वनि बहिर्ध्वनि में उज्ज्वलित प्राण सर्वस्व न्यौछावर में होती विलीन  निशा निमन्त्रण विधु करती ज्योत्सना क्रान्ति कारुण्य मकरध्वज स्याही शबनम लिबास कमलनयन धार में समीर भी अनन्त चञ्चलचित्त सार में

विजय गूञ्ज

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वीर भूमि की है धरोहर तीर्थ विजय गूञ्ज हमारी कारगिल की पथ - पथ करता पन्थी मेरी पुकार शौर्य मेरी धड़कन के गङ्गा बहार यौवन बढ़ चला सिन्धु में ज्वार राष्ट्र एकता अखण्डता का करें हूँकार आर्यावर्त स्वच्छन्द की मस्तष्क धरा मैं इन्कलाब के रङ्गभूमि में मैं पला तड़पन मेरी मां की एक पैगाम  चिङ्गारी मेरी अङ्कुरित बचपन आङ्गन के उठा  लूँ  मैं  शमशीर,  धार वतन  के कर रहे कैलाश महाकाल का हूँकार ललकार नहीं यह ख़ून तड़पन की धार बने हम राष्ट्रीय शान्ति मानवीय सार ध्वज कफन के सलामी करती मेरी धड़कन हौसलों बुलन्दी के तमन्नाओं में मैं विलीन कफन हो जाऊँ मैं शहादत ध्वज में माङ्ग के थाल में मेरी कलित चिङ्गार साँसों - साँसों में धड़क रहा व्यथा मेरी पला माँ के वात्सल्य तड़पन करुणा मैं जञ्जीर गुलामी के चन्द्रहास बनूँ  मैं मातृभूमि कुर्बानी के चनकते मेरी कलियाँ मोल नहीं  अनमोल  है  हमारी आजादी इन्कलाब बोलियाँ की गूञ्जती शङ्खनाद बचपन के आङ्गन में चिङ्गारी प्रज्ज्वलित मोहब्बत सरताज के आँशू में विलीन चाहत मेरी आँखों में बलिदानी दस्तूर पनघट पानी गगरिया के दीव...

पङ्खुरी

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टूट पड़ा पलकों से आँशू बनके मत पूछ मेरी हालात इस गर्दिशों में बिखर गया हूँ पङ्खुरी के पङ्ख से मैं साञ्झ बन चला इस दीवाने के अजनबी राही में गस्ती, ठहराव कहाँ मुझे ? व्यथा भरी शहर में मैं भी फँस गया क्यों काँटे भर पड़ी इस तन में ? इस शोले वेदन में, क्यों मैं बावला दुआ दस्तूर के भी आलम नहीं लहू धार भी बन चला पसीनो से किस्मत मेरी स्वप्निल में कफन धराशाई एतबार मेरी दहलीज के नफरत रञ्ज  के  घूँट - घूँट  में अविचल रहा दुर्दान्त अहर्निश मैं तड़पन ग्लानि में पतवार बना निर्मम चन्द्रहास शमशीर धार बने हम मञ्ज़िल की राहों में धूमिल आँशू भटक गया मैं, ख्यालों से भी गुमनाम होश में नहीं असमञ्जस हिय क्षिति से विलीन में अपरिचित भव छोड़ चला

मेरे गुरुवर

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शिक्षा दाहिनी मेरे गुरुवर  प्रभा प्रज्ज्वलित हो तिमिर में मैं छत्रछाया हूँ आपके अजीर के पराभव अगोचर आपके चरण में पथ - पथ प्रशस्त रहनुमा हमारे कुसीद में साँवरिया आपके भव घन - घन वारि इल्म विस्तीर्ण अक़ीदा प्रज्ञा नय सन्स्कार अलङ्कृत आराध्य करूं मैं कलित नव्य हयात पारावार मीन  हूँ  तड़पित  खल तेरी करुणा आनन्दित सरोवर अवलम्ब श्रीहीन अङ्गानुभूति धरा निश्छल पैग़ाम तहजीब बसेरा शून्य  शिथिल  में  मै तर्पित दामिनी प्रारब्ध अकिञ्चन धार दहलीज  तेरी  याचक  नूतन चक्षु  बूँद  स्मृति  धूल  मैं नतशीर सदा उज्ज्वलित बिरद गिरि दिव में मार्तण्ड स्पृहा जय ध्वनि दीप्ति क्षितिज में

विजयपथ

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रेल -  रेल सी जिंदगी में  क्या धोखा क्या दीवानी हो पथ पथ तिनका बिछाता मन में  हो रहा वसुन्धरा सङ्कुचित काया बन बैठी मशक्कत मेरी दुनिया से मैं हूँ गाण्डीव किन्तु अर्जुन नहीं युधिष्ठिर दीपक का चिराग मैं कुरुक्षेत्र शङ्खनाद की रथी नहीं यह ललकार मेरी विजयपथ की मैं लौट आया हूँ अपने जग से द्विज बनूं  या अपरिमित नहीं रङ्गमञ्च सौन्दर्य होती उज्ज्वल इस अट्टहास भरी परितोष नहीं  अलौकिक निर्मल सुदर्शन बनूं अपनी व्यथा तरुणाई में स्पन्दन यह  असीम  नहीं  अभेद्य  हूँ नाविक भार पङ्किल में प्रतिबिम्ब  झङ्कृत ज्योति में ठहराव कहाँ यौवन बन चला लङ्घित  धार शरद् विकीर्ण चेतन में विभक्त विस्मय  विद्युत्  की  राही  मैं श्रृङ्खलित सङ्कुचित में समाहित क्रन्दन के हाहाकार कुत्सित उद्वेलित स्मृत स्वप्निल में धूमिल हृदय आँशू अङ्गारे में कम्पित करुणा उत्पीड़न कराह कलङ्कित तुषार छाँह की तड़पन में प्यासा काक हे पथिक पथप्रदर्शक करें अपना

पवित्र बंधन

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इबादत करूं मैं अल्लाह की रात  की चान्दनी देखूं  तबसे  मुकम्मल दास्तां की धरोहर में  ख्वाबों के सपनों मैं, सजाऊं कैसे ? प्रेम भाव के आलिङ्गन में समाऊं तन - मन ह्रदय में छा जाऊं सन्सार हजरत मोहम्मद के पैग़ामों  से जन-जन भाईचारा का सन्देश जगाऊं विजय सन्देश पवित्र बन्धन है ईदों के त्यौहारों का तोहफा विस्मित क़यामत दलहीज खुदा कुर्बान मैं दस्तूर है मुबारकबाद का अपना कण-कण से होता जगजीवन निर्माण खुदा है जो करता विश्वकल्याण मानवीयता बना जन्नत दरवाजा महफूज़ रहूं  सदा भवजाल  से शशि शहञ्शाह फरिश्ता अपना मोहब्बत सरताज सरफरोशी सरसी हो जाऊं  प्रभा  तम  तिमिर  में घन-घन घनश्याम बून्द-बून्द बने‌ हम

एक पैग़ाम ( ग़ज़ल )

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मैं चल दिया इस दुनिया छोड़ के  पता नहीं मुझे,  कहाँ जाऊं मैं ? कोई पूछा भी नहीं,  मुझसे भी   ठिकाना तेरा कहाँ  है , कबसे ?  मेरी कहानी ख्वाबों की गस्ती  कितनी दिलकशी रङ्गीन पुरानी  पलकों से लगी मेरी जुगनू प्यारी  मेरी तड़पन से लगी कम्पकम्पी दीवानी   आँसू मेरे अङ्गारे  न  पूछे कोई  ख्याल भी मेरे  मञ्ज़िल भी टूटी  शब्द - शब्द का मारा, खता मेरी  कैसे बताऊं मैं  तुझे दर्द कहानी ?  भूल भी न पाऊं मैं ज़िन्दगी तमन्ना  मुसाफ़िर बञ्जारे बना ज़िन्दगी के  वक्त के मुलजिम बन चला कबसे  स्वप्न मेरी बिखर गयी  तबसे  जख्म भी बेवजह कराह रही   अब किस किसको मैं दस्तूर बताऊं ?  दर्द से तड़पन मेरी कैसे सुलगती ? इकरार भी अब कैसे छुपाऊं रब से ? मुझे एक पैग़ाम ला दो समन्दर से  एक घूण्ट भी जहर का पी लूं श्मशान हो चला मेरी धड़कनें हो जाऊं अदृश्य मैं इस जग से

मैं हूँ निर्विकार

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पथिक हूँ उस क्षितिज के कर रहा जग हूँकार  मेरी लौट आया हूँ उस नव स्पन्दन से कल - कल कलित कुसुम धरा पथ - पथ करता मेरी स्पन्दन होती प्रस्फुटित जलद सागर से क्रन्दन के जयघोष शङ्खनाद मेरी तम  समर  में  आलोक  अपना पलकों में नीहार मन्दसानु नलिन आगन्तुक के अन्वेषण प्रीति कली मैं प्रवीण इन्दु प्राण ज्योत्सना विस्तृत  छवि  तड़ित  मन  में सौन्दर्य ललित कामिनी उर में वसन्त के सिन्धु बहार सुरभि रिमझिम क्षणभङ्गुर में अपरिचित अविकल आद्योपान्त विकल पन्थ है प्रणय झङ्कार दृग में निस्पन्दन बढ़ चला  पथिक नभचल में बूँद - बूँद प्रादुर् उस वितान  में मैं हूँ निर्विकार  स्निग्ध  नीरज अकिञ्चन दत्तचित्त में निर्मल प्रवाह कर्तव्यों में इन्द्रियातीत विलीन मैं सव्यसाची उद्भभिज दुर्धर्ष निर्गुण दूर्बोध नहीं अविचल असीम चला

क्यों हैं तड़पन ?

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क्या तृष्णा टूट पड़ी यहाँ ? इस भिखमङ्गों के बाजारों में कोई अट्टालिका खड़ा करता जाता किसी की अँतड़ियाँ अङ्गारो में पथ - पथ पर क्या कुर्बानी है ? त्राहि - त्राहि  कर  रहा  मानव भ्रममूलक का जञ्जाल यहाँ कोई रोता तो कोई चिल्लाता यहाँ हाहाकार की नाद देखो गूञ्ज उठीं ! अशरत की पुजारी बन बैठे यहाँ जख्म भरी धज्जियाँ फटेहाल  घूँट - घूँट में उगलती विष उत्पीड़न रुधिर विरहित उत्कोच कफन आधि - व्याधि के आततायी आतप क्या शामत है उस कण्टक डङ्क में ?  घृणित - सी चिरायँध बिथा मर्दन अपाहिज अर्सा में क्यों हैं तड़पन ? कटि कटी - सी क्लेश भरी कङ्गला इस आरोहण में भी क्यों हैं कण्टक ? लानत खलक में क्यों रन्ध्र भरी ?

साञ्झ हुईं

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साञ्झ होने को है,  हुईं तम तिमिर में ढकती जाति हौले - हौले वक्त भी लुढ़कते विलीन में मचल मचलकर होते तस्वीर   ऋजु रोहित सप्तरङ्गी अचिर में छँटी प्रस्फुटित तीर व्योम में होते शून्य अपावर्तन ओक में खग प्रस्मृत  क्रान्ति धार पड़ जाती शिथिल शशाङ्क ज्योत्स्ना अपरिचित कामिनी त्वरित ओझल वल्लभ ऊर्मि किञ्चित मृगनयनी रणमत्त अधीर अगोचर निवृत्ति निवृति बटोरती सरसी‌ में खद्योत  द्युति  उन्मत्त  दीवानी झीङ्गुर झीं यामिनी राग में विस्मृत श्यामली  उर  में  नूतन  लोचन मृदु मृदु कुतूहल किन्तु कौन्धती बीजुरी निर्झरणी तरणी मनः पूत कैवल्य में  निर्झर सी भुवन नीहार चित्त को  अलि - सी अचित अचित में तनी  मैं  हूँ  दिवा  दीवा के भार विस्मित

अकेला

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मैं अकेला  रह गया हूँ बस  हताश भरी जिन्दगी व्यर्थ मेरे पूछता नहीं कोई इस खल में मोहताज भरी मैं अवलम्ब स्नेही के फूट - फूट तीर रहा रूदन मेरी काया स्वप्न धूमिल  मेरी असमञ्जस में बावला हूँ विकल तन के तन्हां मैं निन्दा तौहीन  मेरे  श्रृङ्गार  भरी पथ - पथ समर्पण होती व्यथा मेरी फिर भी अपरिचित - सी पन्थी मैं गुलशनें दुनिया मुझे ठुकराते जाते मैं अश्रु भरी तिमिर में  परिचित इस शिथिल निभृत चेतन शून्य में प्रतिध्वनि आह मेरी विस्मृत - सी तृप्त अग्नि में करुण कहानी से रस बून्द प्लवित होती अकिञ्चन  घन  छायी  मेरे  हृदय  तम  में झञ्झा कहर उठती मेरे तन में घनीभूत दुर्दिन आँशू अन्दरूनी में बन चला चिन्मय ज्योति अँजोर गोधूलि रीझ से  भी  मैं  कलुषित मैं  रहा बस मझधार कलङ्कित विलम्बित नीरद उग्र - सी हिलकोरे फिर भी मैं हूँ  पुलकित - सी उमङ्ग

विकल पथिक हूँ

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मैं चला शून्य के स्पन्दन में हिम कलित स्वर्ण आभा स्वर में न्योछावर हो चला इस जग से प्रतिबिम्बित हूँ प्रणय के बन्धन से क्षितिज आद्योपान्त विस्मृत - सी उऋण हूँ पतझड़ वसन्त के अशून्य उषा  कुत्सित  क्रन्दन  गगन के यौवन  प्रभा  है सुरभीत  प्राण में प्रज्ज्वलित सी राग - विराग के स्वप्न में उपाहास्य उपास्य के त्याज्य तपन के इस महासमर ज़िन्दगी के भार लिए कहाँ चलूँ मैं, इस भुजङ्ग तस्वीर में ? पथ में विचलित चञ्चलचित्त - सी शरण्य हो चला चित्त साध्य के अविस्मृत - सी हर्षविह्वल स्वप्निल में उन्मत्त उद्विग्न - सी इत्मीनान नहीं जो अनुराग व्यथित पड़ा अभिभूत में आह्लादित अज्ञ में रञ्ज यथार्थ भरी कोहरिल गुञ्जित चक्रव्यूह गात से तिमिर - सी तरुणाई डारि तीरे ध्रुव - सी दरगुजर दमन दलन के दुकूल भी होतव्यता नहीं जिसे निरन्तर निर्जन मर्द्दित अतुन्द में निस्तब्ध - सा विकल पथिक हूँ मैं

भारत को आजादी प्राप्त करते हुए भी देखा है

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ईस्ट इण्डिया कम्पनी के आगमन से  बङ्गाल को अधीन होते हुए भी देखा है  सिराजुद्दौला मीर कासिम टीपू सुल्तान को  वीरगति प्राप्त करते हुए भी देखा है  अठ्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति में  वीर वीराङ्गना को कुर्बानी होते हुए भी देखा है लक्ष्मी बाई मङ्गल पाण्डे तात्या टोपे की बलिदानी  को प्राप्त करते हुए भी देखा है कोलकाता सूरत लखनऊ लाहौर कराची की अधिवेशनों को भी होते हुए भी देखा है गान्धी नेहरू सुभाष अम्बेडकर के मार्गदर्शन पर लोगों को चलते हुए भी देखा है गरम दल नरम दल के राष्ट्रीय आन्दोलनों में भी  सङ्घर्ष और अन्तर्सम्बन्ध होते हुए भी देखा है खिलाफत असहयोग सविनय अवज्ञा और भारत छोड़ो आन्दोलनों से देश को आजाद प्राप्त करते हुए भी देखा है।

श्रृङ्गार अलङ्कृत

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प्राण तरुवर की अलङ्गित अहर्निश स्पृहा मेरी लोकशून्य में क्या व्युत्सगँ, क्यों भृश ब्योहार ? इस तरस आहु कराह रहा अपराग हूँकार क्यों जग को ? तन मन व्यथा लिप्त वारिधि मेरा जीवन तिमिर अनल्प - सी होती मेरी क्यों व्याल हलाहल ? प्राण पखेरू विप्लव प्रतीर उर्वी छवि उदक शोणित में घनवल्लभी तरङ्गिणी अरिन्द मम गलिताङ्ग अविकल कुण्ठित मर्म मेरी सौन्दर्य की असौम्य प्रहार रङ्गमञ्च  भूधर  मुमूर्षु - सी उत्स्वेदन जयन्त प्रच्छन्न त्रिविष्टप तपोवन में अचुत्य नहीं निस्तेज कृश कलङ्क जख्म भरी मेरी तुनक तृषित दैहिक दुर्विनय प्रसूति भक्षित श्रृङ्गार अलङ्कृत नीरस प्रतीत मरघट में तुहिन पार्थक्य आँसू तरणितनूजा अधरपल्लव गगनाङ्गन मेघाच्छन्न  घड़ी - घड़ी  आच्छादित अरण्यरोधन निस्बत बिछोह साध्वस मेघकुन्तल  मरीचिमाली चक्षुश्रवा 

सूनसान

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मैं आया सुनसान जगत से  क्या करुणा - सी क्या काया ? तुम उठे हो इस धरा से  वाम से ही जलती है ज्वाला बीत चुकी है इस पतझड़ में  मृदु बसन्त की अन्तिम छाया  इस कगारे जीवन में सब हम  विचलित  मधुकर  मतवाला धू - धू जलती इस तड़पने में मोह का बलिण्डा प्रज्ज्वलित माया  रख ले तुम कष्ट धैर्य अपना  रहती सदा अखिल निर्जन प्याला इस खण्हर - सी खादिम ख्याति तिरोहित न्योछावर स्फुर्लिंग क्यारी  तृण समर्पित क्षिति‌ क्षितिज में  अकिञ्चन अगम्य अट्टहास अङ्गारा अनवरत आतप उत्तेजित उज्ज्वल इन्द्रधनुषीय शकुन्त उन्मुक्त कशिश स्वर्ण - रश्मि  स्तब्धता - सी साखि विह्वल व्याधि निरीह निशा गर्वित

अश्रु धार

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एक बार जब नवघोष की गूञ्ज नव्यचेतन क्या ओझल विस्मृत - सी ? चिरन्तन भोर विभोर  अजीर  में प्रदीप पथ प्रवल निर्झर नीहार वात्सल्य कारुण्य आसक्ति अलि उम्दा  प्रणय  ध्वनि  केतनधार कलित सारङ्ग ऊर्मि पुष्पित काया सिन्धु लहर परिष्यन्दी होती उस अरुक्ष अलिक चङ्गा अनभिज्ञ इस उद्यान ज्योति समीर अर्ण तड़ित आलम्ब मन्द - मन्द ईषद्धास कभी आक्रन्दन वारिद के वसन्त तड़ित झलमल किसी घड़ी क्षिति वात से हूँकार करती यामिनी सविता गन्धतृण - सी फर्ण  विरह विकीर्ण उन्मीलित अश्रु धार नतशीर प्रहरी सदा दे अञ्जली अबाध रही उद्वेलित कलुषित में  कुसुमकोमल कर्णभेदी झङ्कृत करती  अलङ्कृत उन्मुक्त पुलकित गगन में अनुरक्त   आह्वान  अङ्गीकृत  करती

कल्पित हूँ

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काल समय के चक्र में अम्बर नव्य शैशव या कितने हुए वीरान असभ्य सभ्य की सन्स्कृति में नवागन्तुक जीवन चेतना धरोहर इब्तिदा सभ्यता प्रणयन भूमि तिलिस्मी सन्स्कृतियाँ अपृक्त सङ्गम शैवाल  मीन  आदम  मानव शनैः - शनैः जीवों की विस्तरण बढ़ती मर्दुम शुमारी तुहिनाञ्शु हरीतिमा जीवन पड़ रहा कङ्काल विलुप्ति कगार बढ़ चले अकाल बञ्जर समर में अनून कल विकल विष   दञ्श   रश्मि   अश्मन्त व्यथा पड़ी घूँटन में क्या प्रचण्ड ? कँपी - कँपी धरा में रुग्णता क्यों ? मुफलिस दोष का क्यों कलंक ? विवश पड़ी, कल्पित हूँ, क्षणभङ्गुर में ज्वाला व्यथित वात्सल्य बोझ जबह दुर्भिक्ष से विकराल कञ्जर में क्षुरिका निर्ममता  अनुशय  मशक्कत  तनाव 

भयभीत हूँ

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नव्य जीवन सौगात धारा पैगाम  पुलिकित निराकार मदोन्मत श्रृङ्गार  तप उठी उस रोधन हृदय ठाँव कल्पित कर रही मौन मयूख नाद निर्झर  चक्षु  नीर अभिशप्त पड़ा करुणामयी कलङ्क हुताशन धरा प्रलय वसन्त में ओझल इम्तिहान  फिर क्यों धार नव्य वसन्त श्रृङ्गार ? एक दीपक समाधि में निभृत भरा  प्रज्वलित पन्क्ति भग्नावशेष ईंढ स्वयं विसर्जित तअम्मुक़ क़ियाम अङ्कुर लहर मर्त्य - सा कलश उच्छ्वसित - सी चिर अखण्ड स्नेह स्मृति विलीन थी उस प्रकाश पुञ्ज गर्वाग्नि  धायँ - धायँ   प्रज्ज्वलित  फूट पड़ी उज्ज्वल राग रति रूप पथ - पथ मझधार पतझड़ सुरभि भयभीत हूँ अनात्म भरी धृति - सी इस कँटीली अबाध नश्वर प्रतीत - सी मानो दे रहा  सृष्टि  त्रास  टङ्कार

मेसोपोटामिया सभ्यता

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दजला और फरात नदियाँ माँझ मेसोपोटामिया सभ्यता का इराक अर्द्धुक सभ्य शिष्ट वृहत साहित्य अङ्क  खगोल  विद्या का प्रसार सुमेर अक्कद बेबीलोन असीरिया सुमेरी अक्कदी अरामाइक भाषा इमारत मूर्ति आभूषण कब्र औजार मुद्राओं लिखित दस्तावेजों का सार ओल्ड टेस्टामेण्ट बुक ऑफ जेनेसिस शिमार पुरखा  मेदिनी  पन्थी  प्राज्ञी  यूरोप उत्तरी सीरिया तुर्की भूमध्यसागरीय प्रदेश उतनापिष्टिम   जलप्लावन   आज्ञप्ति असतत  भौगोलिक  पूर्वोत्तर  इराक वृक्षाच्छादित गिरिपान्त हरीतिमा मैदान निर्मल  उत्स  कान्तार  सारङ्ग   मेह काश्त आगाह आजीविका निर्ज्वर साधन शरत  वृष्टि  उत  अरण्य  तृण  परवरिश  होती  त्रिशोक  बाशिन्दा दजला मुआफिक संवहन विषघ्निका तिय याम्या  मरुखण्ड  पुर  लिपी  प्रादुर्भाव फरात  दजला उर्वर  रज  लतीफ़ उदीची अञ्झाझारा प्लावन आप्लावन ग्राम्य  उत्कर्ष  शहर उद्भव पराकाष्ठा समवर्ती हड़प्पा चीन मिस्र सभ्यता सञ्योग कान्स्य लोह युगेन पुरा...

लालिमा

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नभ में सूरज की लालिमा  इन्द्रधनुष सप्तरङ्ग की छाया  भोर सारङ्ग  साञ्झ दीवानी  कर रही पुष्प  मन मस्तानी स्वर - नाद प्रस्फुटित होती भव कर  नतशिर  तरुवर  त्रिदिव करती अनाविल धरा अगवानी होती महफ़िल इब्तिदा मदन समीर अरसौहाँ मन्द - मन्द  ऊर्मी क्षितिज रश्मि उत्कण्ठित मानिन्द पारावार चन्द्रज्योत्सना रोह उमङ्ग तअज्जुब मदमाती कजरारे धरा स्फुलिङ्ग रवानियाँ रूपहली आभा भाव - विभोर  भव्य  भवसागर पुष्पवटुक पूर्णाहुति प्रीति - राग विच्छिन्न विभूति  व्योम - विहार स्वच्छन्द समरस सुरसरि शहजोर श्रृङ्गार शौर्य सुनाती विरुदावली दास्तां रोमाञ्च भर उठती रोमावलि काया मृग - मरीचिका मधुकर मतवाला

बादल दादा आओ ना

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बादल दादा आओ ना मुझको एक गीत सुनाओ न झूम - झूम  घूम - घूम कर पानी  के बहार  लाओ  न किसानों पर पड़ी समस्या उसका  पयाम  लाओ  न  झूम - झूम  घूम - घूम कर खेतों में पानी बरसाओं  न नदियाँ  तालाब  सूख  रहें पानी  अकाल  बढ़  चले जीव - जन्तु  पेड़ - पौधे पानी के लिए सब तरस रहें बादल दादा टङ्कार लगाई बिजली ऊपर से कौन्ध पड़े काली नीली ऊपर आसमान पानी  की  बरस  रहे  बहार मेण्ढ़क टर - टर  कर  रहें मछली  खुशी से नाच रही सरसों की झूमती हरियाली कितनी सुन्दर कितनी भाती बच्चे जब सुने यह टङ्कार नाव - छाता ले दौड़ लगाई झूम - झूम  घूम - घूम कर बच्चें  खुशी  से   नाच  उठे चिड़ियाँ चूं - चूं करती जाती आपस में कभी लड़ती जाती कितनी सुन्दर  कितनी प्यारी सबको कितनी  सुन्दर भाती चिड़ियाँ  घर  को  लौट  गए किसान खेतों को बढ़ चले सूरज भी आए   वों भी  गए पानी  बरस - बरस  रहे  नभ

मैं मीत हूँ

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इस माटी की कुर्बानी हूँकार कर रही मानवता तन्मयता का रसगान कर रही मैं दीवाना बन चला इस रोधन में मैं कर्तव्यों का भार लिए इस तोरण में प्रफुल्लित हो रहा लहराती कुसुम महिमामण्डित रही शैशव वितान कौसुम मैं मीत हूँ , रग - रग में समा रहा  मध्वक कशिश नहीं , अन्वय अनुराग विकल विह्वलता तन रही इस खल तमाशबीनों बनकर रह गया बस अज्वाल इस कसाव कहर बाजार में , मैं विरक्ति वैभव प्रासाद मदिरालय निखिल अनुरक्त इस ईप्सा लिप्त का कगारे नहीं मैं जितेन्द्र वसन्त में अवसाद नहीं चित्मय वाग्मी उदात्त आलोक अङ्गीकार  उद्धत ऊसर आतप रही अन्तर्विकार आलोल सरिता वाहित अहर्निश मुझमें प्रमोद प्रगाढ़ निर्विकार नूर मञ्ज़िल में तप्त उर गात त्रस्त त्राहि-त्राहि क्लेश कौतूहल आत्मविस्मृत सा क्यों हम अन्देश

कहां ओझल

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आमद पुनः पुनः कहां ओझल भव  दीवा  क्षीर  तम  नीर पपीहे पिक रीछ भव सार खोजूँ  मैं  विरह वेदना तीर उद्विग्न  हिय  अरुक्ष  कली आणविक शून्यता अतल रोध तुङ्ग  अब्दि  इन्दु  तत्व  ओज आसव प्लावित चित्त निवृति अँगना  अङ्गना  रम्य  जोन्ह अशक्त असक्त अनल अनिल दीर्घ  उद्दीप्त  कृति  कीर्त्ति अलि भोर विहग रति कूजन मरीची मरीचि वल उडु ओज करील करिल-सा उपरक्त उपरत आसत्ति आसक्ति अभेद अजिर विभोर यति यती पुष्कल-सा विरद तरणि  दामन  तरणी  प्रवाह आधि  आर्त  अगम  झल-सा मृदु कल्पनातीत चरम चाव अलिक अत्युग्र  अश्म-सा  हयात  धार

पृथ्वी माँ

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मेरी धड़कन स्कन्द पृथ्वी माँ धरा  तोयम्  विश्व  अम्बर प्रकृति की हरीतिमा सन्सार आप्यायन निरन्तर समाँ समाँ  अनापा अवनि परवरिश पाणि विपिन वारि काश्त घड़ी आहार वतीरा प्रोच्छून अखीन अग्रहार हयात   आवार   प्राणी   पाणी सृष्टि प्राकट्य पयोधि मुत्तसिल अनात्म से आसना अज़ीम धरा मीन मण्डूक मुस्तनद असार  अध्वगामी निलय आदम उच्छशिल प्रभा पुञ्ज शाक्वर मार्तण्ड ज्योत्स्ना  तम  हेमपुष्प  मसृण मेह झञ्झावत अन्तर्निवेश अमसृण अह्न निशि घड़ी अचण्ड उच्चण्ड सौन्दर्य विहार पारितन्त्र अन्तर्क्रिया  अन्योन्याश्रित अवयव ऊर्जा प्रवाह अनैसर्गिक  अणु  अगम  अरवाह होती खलक तारतम्य आविष्क्रया

बच्चे जा रहें हैं

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क्या आफत आ पड़ी यहां पौ फटी ,  बच्चे जा रहें हैं कहाँ ? , काम  करने समस्या का बोझ इतना दबा  बच्चे भी लगे जाने काम गरीबी की स्याही  में विलीन अर्थ सङ्कट का विषाद भरी भोजन - भोजन के तरसते लोग क्या उसकी गुनाह की ताज़ीर ? या  पाछिल कर्म  की  प्रायश्चित्त ! बञ्जारा दिलगीर बच्चों की टोली एक परतल लिए भँगार मे इस्लाह आपा खोए मिलते नित  इर्द-गिर्द मुस्तकबिल   प्रभा   दफ़्ना   के यतीम तफ़रीह शाकिर परवरिश  रङ्ग - बिरङ्गे इन्द्रधनुष की वितान पुष्प कलित  आबदार  प्रस्त्रवण मेघ दामिनी  नूतन  अश्रु  बहार नव कोम्पल उद्भव पुष्कर पिक नतशीर फिर बच्चे क्यों हैं अभिशप्त लाञ्छन ? विकराल प्रतिच्छाया क्षितिज इफरात ज्वार कहर दहन आरसी  प्रहार मरणासन्न के शून्यता में समाधित दोज़ख मधुशाला में इन्तिहा धरा दुनिया आगाह कदाचित्  आगाह

क्या लिखूं मैं

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अब  क्या   लिखूं   मैं ? इस  मिथ्यावादी धरा  में जग जग  को  लूट  रहा हो रहा जहां विश्व कलङ्क मनुज रहा दुर्जन की कगार असभ्य  से  सभ्यता का विकास फिर  क्यों जा  रहा  है  जहां ? वापस  वहीं  समय  धरा  तक क्या चाह  है  इस  मानव  का ? जीवन जीना या न्योछावर कर देना इस  जीवन  की  आडम्बर  में अङ्गुश्तनुमा परिहास का मन्वन्तर नापाक भर रही चित्त विक्षेप चारुमयी हरीतिमा की एहतियात रुग्णता का  व्याध  माहुर - सी आप्यान की ही क्यों रही  प्रहाणि ? अङ्गना - अङ्ग  सी मत्कुण अभञ्जन व्यथा  विप्लव  प्लावन  पार्ष्णि हौरिबुल  कुम्भिल  झङ्कृत  सार उत्पीड़न भर देती अन्तःकरण में

महङ्गाई

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जीवन  जीना  दुसाध्य  हो  रहा इस  महङ्गाई  भरी दुनिया  में रोज - रोज कीमत की तादाद विकल त्रास तृष्णा की क्यों मृगाद ? दारुण विडम्बना की मण्डी महाशून्य इच्छा निरोधस्तपः  निर्मम   घात पसोपेश अबलता व्यतीपात व्यङ्गय अकिञ्चित्कार स्पृहा मुख़ालिफ चकाचौन्ध अनुपशान्त अकूत प्रपञ्च आहत    खिन्नता   कुढ़न   ग्रन्थन ख़ुद्दारी  दर्प   अखिल  दञ्श  भरा कुण्ठित  ठाट  णँता  कृश  अकारथ उस्वाँस   निनाद   तड़ित्   तञ्ज सम्भार  वाञ्छा  ऐश्वर्य  जगत इन्हिसार  निज़ात  निरोध  तार्क्ष्य आखोर  औन्धा  नृशन्सता  आडम्बर देवारी - सी स्पर्द्धा  किसबी  बलात् कार्पण्य उपालम्भ ख़ुद्दारी मगरूर वज्रादपि कठोराणि सन्तप्त काँखते अँधड़    कदर   वाञ्छित   निहारी