विकास

राजनैतिक आजादी मिली
आर्थिक आजादी लानी है
है पूंजीवादी जनतंत्र यहां
जनवादी जनतंत्र लाना है।

रुक जाओ पीछे घूम जाओ
आगे-आगे कदम बढ़ाओ
कदम-ताल पर चलना है
राजतंत्र की ओर जाना है।

राजा का दरबार लगा है
प्रजा का दुखड़ा सुनाना है
सामूहिक समस्याओं का
निदान हमें नहीं करना है।

जहांगीर ने लटका दे जंजीर
खींचो उसको अपनी बात कहो
तुम को न्याय मिले ना मिले
गदहा को अवश्य मिलेगा

धरती की खुदायी करने से
इतिहास की खोज होती है
सिंध  घाटी  की   सभ्यता
संसार को पता चलता है

अब पुराणों के पन्नों में
खोजो इतिहास छिपा है
पढ़ो तुम दंत कथाओं को
समुद्र मंथन की कहानी छपी है

देवताओं और राक्षसों के श्रम से
रत्न और अमृत आया था
लक्ष्मी गयी विष्णु के घर
जहां क्षीर का समुंद्र था।

देवता पी गए सब अमृत
राक्षस सब ठगे गए थे
उनके गुरु शिव को ही
जहर पीना पड़ा था।

विश्वास करो गंगा-संगम पर
सिंधु जल लहरा रहा था
आज हमें भी मंथन करना है
रत्न और अमृत लाना है।

गंगा के घाट घाट पर
कुंभ का मेला लगाना है
हर मेले में उत्पाद बिकेगा
कंपनी घर लक्ष्मी को जाना है।

भक्तों के जेब कट जायेंगे
निठल्ले साधु रत्न पावेंगे
अमृत राजनेता  पियेंगे
श्रमिक फिर ठगे जायेंगे।

नहीं मानो तो  पत्थर है
मानो तो देवता का वास है
अखबारों में  बिहार का
उच्च शिखर पर विकास है।


लेखक:- शिवबालक सिंह

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