वीणा मधुर- मधुर कुछ बोल
माता के तन पर नहीं कपड़ा
भूख से बच्चा बिलबिला रहा
ह्रदयहीन संसार देख रहा
खुल रहा शासक दल का पोल
वीणा मधुर-मधुर कुछ बोल
वीणा गाओ कुछ ऐसा गान
जोश से भर जाय नव जवान
उथल-पुथल मच जाए
बढ़ जाए मानवता का मोल
वीणा मधुर-मधुर कुछ बोल
वीणा से ऐसा स्वर निकल आए
जग से विकृति मिट जाए
मानव-मानव का भेद मिट जाएं
आर्त्तोजनों में जीवन रस घोल
वीणा मधुर-मधुर कुछ बोल
ईर्ष्या द्वेष से भरा यह संसार
नहीं मिलता किसी को भी
किसी का मधुर प्यार
मिट रहा जीवन अनमोल
वीणा मधुर-मधुर कुछ बोल
वीणा कुछ ऐसी तान सुना
झंकार उठे दिल का तार
प्यार से भर जाए यह संसार
निकले सब मुख से मीठा बोल
वीणा मधुर-मधुर कुछ बोल
लेखक:-वरुण कुमार
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