नारी

पुरुष  वर्चस्व   के  आधार  पर
भारत  का    समाज  बना  है
पुरुष  स्वामी  नारी  अनुचर  है
बागीचा नारी पुरुष रमण करता है 

नारी  है  एक  सजीव  गुड़िया
पुरुषों    उसे    सजाता   है
अपनी  ही सजावट  को देख
नारी   मुग्ध  हो  जाती   है

दूधमुंहे   बच्ची  को   माता
नाक- कान    छेद   देती   है
जानवरों को नाक कान छेद कर
रस्सी   से   बांधा   जाता।  है

नारी  घर  की  फालतू  संपत्ति
उसको  दूसरे  घर   जाना  है
पर  जहां  कहीं  वह  जाएगी
बाप की पगड़ी लेकर जाना है

बाप   की  पगड़ी  की  रक्षा
बेटी  जीवन  भर   करेगी
बेटे  को  क्या  है  परवाह
वह  है  वंश  की   बेली

नारी  है   प्राइवेट  लिमिटेड
पति  ने  दी  उसको  पहचान
 ट्रेडमार्क  लाया  माथे   पर
चमकता  हुआ  लाल  निशान

नारी  के  दो  रूप  हम  चाहते
बुर्का  घर  में  बाहर  बिकनी
पुरुष  उठता  घर   में  बुर्का
नारी  हटाती  पर्दे  पर बिकनी

पति  और  पुत्र  की  खातिर
नारी  घोर  तप  करती  है
पुत्री  रहती  सदा  उपेक्षित
पत्नी  प्रताड़ित  होती  है

जब    आता   रक्षाबंधन
बहन  प्रार्थना  करती  है
भाई।  राखी  बंधवा  कर
बहन  की  रक्षा  करता है

पग-पग  पर  हीन  भावना  से
ग्रसित  नारी  अबला   रहेगी
पुरुष  पूजा  बंद  नहीं   होगी
नारी  सबला  कभी नहीं बनेगी

जब  तक  होगा   कन्यादान
जब  तक  तिलक  दहेज  रहेगा
इज्जत की परिभाषा नहीं बदलेगी
भ्रूण     हत्या    नहीं     रुकेगी

जब  पुरुष   करता   बलात्कार
नारी   की इज्जत चली जाती है
पुरुष  के  कुकर्म  करने पर  भी
उसकी   इज्जत   नहीं    जाती

नारी  के  लिए  कानून बनता  है
परिवार  टूटता  झगड़ा  बढ़ता  है
पुरुष  करता  नारी  को  प्रताड़ित
नारी पुरुष को प्रताड़ित करती  है

नारी , पुरुष  बनने  की  होड़  में
बर्बादी    मोड़    लेती    है
पुरुष आचार संहिता के  अंदर
नारी  आंदोलन   चलता   है

सिंदूर  है  गुलामी  का  प्रतीक
चोरी कायरता  का  प्रतीक  है
पेटी के कपड़े  पैरों  की  जंजीर
सोने की सिकरी गले की फांस है

अब ना करेगी नारी वर की पूजा
और    न    बजरी   गिलेगी
बाप  की  पगड़ी  को  नारी
माथे   पर    नहीं   बोलेगी

पतिव्रता   और  सतीत्व  का
गुणगान  करने  वाले और
सती  की पूजा करने  वाले
सब  दुश्मन   है  नारी  के

अब  ना लेगी  गुजारा  भत्ता
अपने पैरों  पर खड़ा  होना  है
अब नारी का आदर्श सीता नहीं
लोपामुद्रा  और   माधवी   है
 
लेखक :-  वरुण कुमार 

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