दल और नेता
राजनीति के आकाश में
गहरा कोहरा छा गया है
जनजीवन प्रदूषित हो गया
सब का जीना हराम हो गया है
राजनीति भ्रष्ट हो गयी
सत्य का सूरज छिप गया है
घोटाले आंखें दिखा रहे
ईमानदारी थर-थर कांप रही है
दल सभी भ्रष्ट हो गए
विकल्प नहीं सूझ रहा है
बुद्धि विवेक कुंद हो गया
अंधविश्वास बढ़ रहे हैं
भ्रष्ट नेता और कम्पनियां
यह दौर दिवाली मना रही हैं
दलित-पीड़ित जनता का
दिवाला निकल रहा है
वामपंक्षी दलों को छोड़कर
और सब दिल हैं एक समान
उनके हाथ जाने के गले के पास
हो रहे पूंजीपतियों पर कुर्बान
सरेआम खुले बाजारों में
खोटे सिक्के चल रहे क्षहैं
नैतिक नियम बेकार शब्द हुए
ठगी-धोखे का बाजार गर्म है
मक्कारी भरे चाल चल रहे
लालच भरे पंजीम आ रहे हैं
धूर्तता बड़ी आंखें चमक रही
संवेदनशील लोग परेशान हैं
समझौते का सिद्धांत टूट रहा
भारत का लोकतंत्र भटक रहा है
मनाते महंगी की रजत जयंती
भूख का धुआं फैल रहा है
पेट जल रहे अहिंसा चूक गया
शासन की बंदूक चल रही है
हिटलरी फरमान के सामने
सत्य घायल हो गया है
अपराध हिंसा अपहरण
बलात्कार उत्पीड़न बढ़ रहा
हनुमान चालीसा सुंदरकांड
पाठ करने से यह नहीं रुकता
नेताओं के भ्रष्ट आचरण से
वायुमंडल विषाक्त हो गया है
नित्य नए उद्घाटन हो रहे
नेता एक-एक कर बेपर्द हो रहे हैं
समृद्धि का सारा हिमपात
शिखरों पर रह जाते हैं
नीचे तलहटी वालों को
केवल चित्र लहरी मिलती है
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