मैं पतझर जैसा नीरस हूं


जैसें सीता बसी राम में,
मोहन में बसती राधा।
वैसे तुम मुझमें बसती हो,
प्रिय तुम बिन मैं हूँ आधा।।

मैं पतझड़ जैसा नीरस हूँ,
तुम वसंत रितु प्यारी हो।
मैं हाड़-मांस का पुतला हूँ,
प्रिय तुम प्राण हमारी हो।।

तूं धरती मैं नील गगन हूँ,
मैं सागर तुम सरिता है ।
मैं भौंरा तू पुष्प बाग की,
तेरे संग बहकता है ।।

मैं शब्द हूँ तुम हो छंद प्रिय,
मैं कवि तुम कविता मेरी ।
अक्षर बनकर आत्म-पटल पर,
छाई तुम वनिता मेरी ।।

मैं हरिवंश का कलम प्रिय हूँ,
तुम मेरी हो मधुशाला ।
मैं उस दिन ही सब जीत लिया,
पहनाई जब वरमाला ।।

मैं साजन तू सजनी मेरी,
तुम मेरी परछाई हो ।
कर्मभूमि में बनी सारथी,
उतर स्वर्ग से आई हो ।।

रात अमावस देख कभी भी,
हे सजनी मत घबराना ।
प्रीत-प्यार की जगा रोशनी,
संग सदा चलती जाना ।।






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