खेती और किसानो की दुर्दशा
भारत कृषि प्रदान देश है,जिसमें किसानों की भुमिका होती है.उन्हें अस्थिर रोजगार की प्राप्ति होने के कारक तापमान,वर्षा,बाढ़ और भु-गुणवत्ता भी हैं.जिसमें बड़े किसानों से लेकर खेतिहर किसानों का समायोजित रूप हैं.
वह वीर(किसान)अपने निर्जन बागो में ,अपने कर्मों का दान न्योछावर करते हैं।
कभी धानो की खुशबू,कभी गेहू से,कभी-भी भूखो से तर्पण नही॥ उनको नमन,उनको नमन,उनको शत्-शत् नमन
किसानों की दुर्दशा अति कष्टमय हैं.इसका परिणाम के कारक हमलोग स्वंय हैं.जिसप्रकार विनिर्माण,नगरीयकरण,उद्योगो और अमीर बनने का स्वप्न ही लोगो को भ्राष्टाचारी का जन्म देती हैं.इन सब कारको से भू-स्तर खेती के लिए विलीन होता जा रहा हैं.भूमि धीरे-धीरे बंजरता की ओर अग्रसित होने के कगार पर हैं.जिससे किसानो कि जिदंगी त्राही-त्राही हो रही हैं.किसान -भी दिन दूना रात चौगुणा करके भी धनोपार्जन करने मे असमर्थ हैं.कही-कही किसानो का दाना-पानी उठ गया हैं.अब देश का क्या होगा ?
वह वीर(किसान)अपने निर्जन बागो में ,अपने कर्मों का दान न्योछावर करते हैं।
कभी धानो की खुशबू,कभी गेहू से,कभी-भी भूखो से तर्पण नही॥ उनको नमन,उनको नमन,उनको शत्-शत् नमन
किसानों की दुर्दशा अति कष्टमय हैं.इसका परिणाम के कारक हमलोग स्वंय हैं.जिसप्रकार विनिर्माण,नगरीयकरण,उद्योगो और अमीर बनने का स्वप्न ही लोगो को भ्राष्टाचारी का जन्म देती हैं.इन सब कारको से भू-स्तर खेती के लिए विलीन होता जा रहा हैं.भूमि धीरे-धीरे बंजरता की ओर अग्रसित होने के कगार पर हैं.जिससे किसानो कि जिदंगी त्राही-त्राही हो रही हैं.किसान -भी दिन दूना रात चौगुणा करके भी धनोपार्जन करने मे असमर्थ हैं.कही-कही किसानो का दाना-पानी उठ गया हैं.अब देश का क्या होगा ?
टिप्पणियाँ