वर्षा(काव्य)
सावन कब बीत गया घरती अब भी प्यासी है ताल-तलैया सूख रहे मछलियाँ छटपटा रही है कुएँ सब सूख गए चापाकल हाँफ रहे हैं खेतों के पौधे सूख रहे हैं किसानों के होश उड़ रहे हैं आश लगाए रहे सब पर बारिश नहीं हुई अन्ना को देखते रहे सब उम्मीद पर फिर गया पानी धान के पौधे लगे नहीं जो लगे थे सूख रहे हैं पटवन से जो मकई लगा दाने उसके सूख रहे हैं यज्ञ हुआ इन्द्र वरुण का धुआँ उड़ा आकाश में ठगी गयी सब जनता पानी बरसा नहीं खेत में बादल भूल गए बरसना मेढ़क भूल गए गाना झिंगुर ने चुप्पी साध ली अब कौन गाए तराना धन्यवाद, लेखक:-वरुण कुमार