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जून, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

वर्षा(काव्य)

सावन कब बीत गया घरती अब भी प्यासी है ताल-तलैया सूख रहे मछलियाँ छटपटा रही है कुएँ  सब सूख  गए चापाकल हाँफ रहे हैं खेतों के पौधे सूख रहे हैं किसानों के होश उड़ रहे हैं आश लगाए रहे सब पर बारिश नहीं हुई अन्ना को देखते रहे सब उम्मीद पर फिर गया पानी धान के पौधे लगे नहीं जो लगे थे सूख रहे हैं पटवन से जो मकई लगा दाने उसके सूख रहे हैं यज्ञ हुआ इन्द्र वरुण का धुआँ उड़ा आकाश में ठगी गयी सब जनता पानी बरसा नहीं खेत में बादल भूल गए बरसना मेढ़क भूल गए गाना झिंगुर ने चुप्पी साध ली अब कौन गाए तराना धन्यवाद, लेखक:-वरुण कुमार

राष्ट्र-देश(कविता)

कौन तेरा राष्ट्र है ? कौन तेरा देश है ? जहाँ मेरा पेट भरता जहाँ मेरा वास है वहीं मेरा राष्ट्र है वही मेरा देश है जहाँ जैसी जलवायु वहाँ वैसा भेष है कौन तेरा राष्ट्र है ? कौन तेरा देश है ? अफ्रीका से जब मानव आया सारी दुनिया में  बस गया पहले  आदिवासी   आया हुआ सभ्यता का विकास कौन तेरा राष्ट्र है ? कौन तेरा देश है ? उत्तर-दक्षिण,पूरब-पश्चिम सीमा से घिरा हुआ कौन राजा कहाँ हुआ ? कौन लड़ाई कहाँ हुई ? इतिहास और भूगोल ही क्या तेरा देश है ? कौन तेरा राष्ट्र है ? कौन तेरा देश है ? राष्ट्र नहीं इतिहास है देश नहीं भूगोल है संसार के मानव एक हैं धरती एक पिण्ड गोल है जगह-जगह सभ्यता संस्कृति का हुआ विकास कौन तेरा राष्ट्र है ? कौन तेरा देश है ? राष्ट्र नहीं मिलता कवि-गोष्ठियों में और नहीं मिलता सरकारी समारोहों में यह नहीं  पर्यायवाची शब्द है हिन्दुत्व का राष्ट्रीयता प्रार्थना नहीं भावना और नहीं उच्छ्वा9स कौन तेरा राष्ट्र है ? कौन तेरा देश है ? धन्यवाद, लेखक:-वरूण कुमार

चुनाव

चुनाव चुनाव का खेल

कोविद 19 का सकंट विद्यार्थियो का खंजर भविष्य

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कोविद 19 का सकंट विद्यार्थियो का खंजर भविष्य बन रहा हैं।पूरे देश मे कोरोना का सकंट भयावह स्थिती मे हैं।दिनानुदिन लोग इसके चपेट मे आ रहे हैं।यथाशक्ति सरकार का प्रयास भी नाकाम होता जा रहा हैं।हर घड़ी देश का सकंट बदतर होता जा रहा है।मजदूर वर्ग क्षुधातुर का शिकार हो रहे हैं।इस वर्ग शाश्वत शोकदग्ध होने मे विवश हैं।मार्गव्यय भी सरकार के अपने खाते मे जा रहे है बल्कि मजदूर का सेवा देने का योजना भी सिर्फ कागज मे सिमट कर रह जाती हैं। विद्यार्थियो का भविष्य भी इस कोरोना के वैश्विक महामारी मे फँसी हुई हैं।विद्यालय,विश्वविद्यालय और महाविश्वविद्यालय भी कोरोना के कारण बंद हैं।विद्यार्थियो का कीमती समय नाश होता जा रहा हैं।विद्यार्थियो का भविष्य भी अपने पाँव मे कुल्हाड़ी मारने जैसा हैं।कोरोना का सकंट विद्यार्थियो के लिए आँखो का काँटा हो गया हैं। इसका सकंट ज्यादा से ज्यादा विद्यार्थीयो को भोगना पड़ेगा।पढ़ाई मे कमजोर होता जा रहा है इसका जिम्मेदारी मे हमलोगो को आगे आना होगा।हमलोगो को सतत् प्रयास करना होगा  कि हमे सरकार से अनुरोध करना चाहिए कि विद्यालय को जल्द से जल्द खोला जाए। धन्यवाद, लेखक-वरूण कुमार

पर्यावरण का विकास जरूरी है

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सततपोषणीय विकास के लिए पर्यावरण का विकास होना जरूरी हैं।हमलोगो का जीविकोपार्जन के लिए पेड़-पोधौ का होना अतिआवश्यक हैं।हमारा इतिहास साक्ष्यी है कि आदिमानव भी पेड़-पौधौ पर ही जीवनयापण और उस पर ही निर्भर रहते थें।आदि मानव अपना भोजन से लेकर घर तक पेड़ो का इस्तेमाल करते थें।आज भी हमलोग इसी पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निर्भर रहते हैं।हमारा कई धर्मो के परंपराएँ मे भी पेड़-पौधो को भगवान की तरह से पूजा करते है ,उदारणतया हिन्दु धर्मो के कई पर्वो मे पेड़-पौधो की प्रधानता रहती हैं।जैसे बरसात(वट सावित्री व्रत) ,हर वृहस्वतिवार के केला वृक्ष को पूजा देकर नारायण की पूजा की जाती है,उसी तरह हर शनिवार को पीपल वृक्ष मे माँ और बहनें का जल देना आदि परंमपराएँ हैं। ईसाई धर्म के पर्व मे क्रिसमस डे भी इसी आधार पर हैं।हमारी परंमपरा भी वृक्ष को बचाने की भूमिका भी अदा करती हैं। वृक्ष ही नही वायु,जल,वन्यजीव,भू-स्तर और जीव-जन्तु आदि की परास्परिक संबंध स्थापित करना ही पर्यावरण को बचाने की प्रक्रिया हैं।आधुनिक काल मे मानव हर हमेशा पर्यावरण का सर्वनाश ही किया हैं।कभी घर बनाना तो कभी उद्योग स्थापना करना इसे संकंट मे ल...

घर से गंगा तक का सफर

आज शुक्रवार दिनांक -5 जून 2020 को गंगा मे स्नान के लिए गये थें.गंगा जाने के रास्ते मे मैने कई सारे खेत-खलियान,बाग,घर,दुकान और पेड़-पौधो के हरियाली आदि देखे,जो ऐसा प्रतीत हो रहा था कि यह पृथ्वी का ह्रदय हों.उसी  क्रम मे कुछ वन्य जीव का ऐसा तालमेल था, जो चीटीं की झुंड कि भाँति लग रहा था कि मानो कि एकता का परिचायक रूप हों.रास्ते-रास्ते मे कभी हवा का झोंका तो कभी घूप की गड़माहट मेरे रगों के तन-मन  के भीतर प्रतिछेद कर रही थीं.कभी तो ऐसा लगता था कि मानो धरती की हरियाली मुझे हर हमेशा पर्यावरण की ओर  आकर्षित करती थीं.पर्यावरण का सरंक्षण,सततपोषणीय विकास न होना,मुझे चिन्ता के कारण मेरे मन को हर हमेशा कंटक मारती थीं.मेरे मन के अन्दर  को खोखला करता जा रहा था,चाहे मूझे हरियाली कितनी भी अच्ची लगें. जब हम अपने गंतव्य स्थान पर पहुँचे तो लगता था कि मानो गंगा की कंचन लहरों के आपस मे टकराने से मेरे अन्दर  की उठ रही उत्कंटा को और अधिक प्रबल करती थी मानो ऐसा लगता था कि स्वयं वरूण देव का पदार्पण धरती पर हुआ हों.मै जब नीचे पैर किया और मेरे पैर से पानी का स्पर्श हुआ तो मेरे मन मे परां...

पंञ्चमंत्र

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गड़्गा सरस्वती सिन्धुर्ब्रह्मपुत्रश्च गण्डकी। कावेरी यमुना रेवा कृष्णा गोदा महानदी।।1।। अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवन्तिका। वैशाली द्वारिका ध्येया पुरी तक्षशिला गया।।2।। महेन्द्रो मलयः सह्यो देवतात्मा हिमालयः। ध्येयो रैवतको विन्ध्यो गिरीश्चारावलिस्तथा।।3।। नागार्जुनो भरद्वाज आर्यभट्टो बसुर्बुधः। ध्येयो वेंकटारामच्य विज्ञा रामानुजादयः।।4।। चाणक्यचन्र्दगुप्तौ च विक्रमः शालिवाहनः। समुन्द्रगुप्तः श्रीहर्षः शैलेन्द्रो बप्परावलः।।5।।

Water Resources

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Water is source of energy for livelihood,however water is polluted in the river,lake and pool.Most pepole have not understanding value of water.They have wasted it.Water resource is valuable for all living organism. Many scientists were described of water management.In early time many evidences help us to find sources of water in the different area.Subsequently first organisms emerged from water.From this demostication of human being develope nearly water sources. More recent time people had find evidence of fossils in the water over and over.Different species excavated in the water.It was only people were digging land for water,such as well,pond and pond. Today the remains of pure water in the less amount.people have purchese a bottle of water everyday.what is condition of enviroment for limited resource ? Many questions arises in the mind about earth.who is responsbility for danger condition of enviroment. Writer:-VARUN KUMAR  

खेती और किसानो की दुर्दशा

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भारत कृषि प्रदान देश है,जिसमें किसानों की भुमिका होती है.उन्हें अस्थिर रोजगार की प्राप्ति होने के कारक तापमान,वर्षा,बाढ़ और भु-गुणवत्ता भी हैं.जिसमें बड़े किसानों से लेकर खेतिहर किसानों का समायोजित रूप हैं.                         वह वीर(किसान)अपने निर्जन बागो में ,अपने कर्मों का दान न्योछावर करते हैं।                    कभी धानो की खुशबू,कभी गेहू से,कभी-भी भूखो से तर्पण नही॥ उनको नमन,उनको नमन,उनको शत्-शत् नमन                   किसानों की दुर्दशा अति कष्टमय हैं.इसका परिणाम के कारक हमलोग स्वंय हैं.जिसप्रकार विनिर्माण,नगरीयकरण,उद्योगो और अमीर बनने का स्वप्न ही लोगो को भ्राष्टाचारी का जन्म देती हैं.इन सब कारको से भू-स्तर खेती के लिए विलीन होता जा रहा हैं.भूमि धीरे-धीरे बंजरता की ओर अग्रसित होने के कगार पर ह...

जुड़वा पान के पत्ते के खास बात:~अगर पति-पत्नी के बीच विवादों का निवारण होता है जब पत्नी अपने हाथों से जुड़वा पत्तो से पति को सेवन कराती हैं.

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