धरती हरियाली हो ( कविता )

हमारी धरती हरियाली होगी, जहां भौगोलिक विविधता हों। पर्वतीय - मैदान - तटीय संगम, हिमकर से हिम निर्झर हों। वसन है जहां अरण्य का, धेनु का जहां गौरस हों। मिलती है वही हरीतिमा, हलधर का जहां हरिया हों। आबोहवा का समागम, जहां सरिता की बहती धारा हों। जगत का आधार है वहां, जहां परि का आवरण हों। मनु ज का अस्तित्व है वहां, जहां मानव की मानवीयता हो। चरण स्पर्श करती साहिल, जहां पारावार का घाट हो। तरुवर की छाया है वहां, जहां पेड़ो का आबंडर हो। पृथ्वी का नभ है वहां, जहां नग का गगनभेदी हो।