खामोशी


गोधूलि बेला थी
आसपास चहल-पहल सा था
कहीं लोगों की भीड़
कहीं तो गाड़ियों की गड़गड़ाहट
वही घड़ी जब मैं
आदर्श सखा का स्मरण आया
मिथ्या ही वार्तालाप के बाद
सखा की खामोशी उपेक्षा-सा 
मैं सुध-बुध खो बैठा
उसके ठांव में शांत-सा माहौल
उसके तह में बरगद पेड़ो की 
प्रतिकृति प्रणयन-सा था
वहीं पक्षियों की चहचहाहट
खुशनुमा माहौल से भावविभोर भीं
कहीं दूर पतंग से ही रमणीय
जैसा निनाद था
कुछेक मील आपगा का कर लेती
नीर  मनोहर-सा  तिरोहित था



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