लोकतांत्रिक देश मे नेताओ के द्वारा लूट
आज हर देश लोकतांत्रिक देश बनता जा रहा हैं.जिसमे लोगो के द्वारा सरकार को चुनती हैं.वे सरकार देश का प्रधानमंत्री से लेकर गाँव की मुखिया तक का होता हैं.वे जनता के लिए भगवान स्वरूप का होता हैं.जनता हर हमेशा सरकार पर निर्भर रहती हैं.
लेकिन अब सरकार के संगठन मे भ्रष्टाचारी ,सूदखोरी,हत्या,चोरी-डकैती और संगठन मे सभी का एक मत न होना आदि कि समस्याएँ से भरपूर हैं.जनता से वोट पाने की लालसा हर हमेशा पक्ष-विपक्ष के सरकार से टकराव करते रहते हैं.
सरकार निर्दयीता से गरीब जनता से लगान लेकर नेताओ का पेट भरते हैं.जनता के ऊपर विकाश के लिए नाममात्र का पैसा का वहन करती हैं.पूरे पाँच वर्ष के अवधि तक यही छोटा-सा काम का ढिनढोरा पिटती रहती हैं.नेता लोग देश को खोखला बना के रख दिया हैं.देश मे गरीबो का जंजाल से हमारे मातृभूमि को शर्म से झुका दिया हैं.
नेतालोग सरकार से फंड लेकर अपना पेटी भरने को हर हमेशा आतुर रहती है,ये लोग निर्बल का जमीन हड़पकर,उन्हे बेदखल कर देते है,जिससे हासिया पे गये परिवार कष्टकारी जीवन के जीने के लिए मजबूर होते हैं.उन्हे हर हमेशा दर-दर भटकना पड़ता हैं.उन्हे सरकार से लेकर कानून तक का दरबाजा खटकाना पड़ता है,तब भी उन्हे सफलता नही मिलती हैं.
इन सब का जिम्मेदार कौन है ? क्या यही हमारा समानता का अधिकार है ? गरीबो का मौलिक अधिकार कहाँ गयी ? यह प्रश्न सरकार को क्यो नही सूझता ? क्या इसलिए हमलोग सरकार को चुनते है ? अब इन अपाहिज जनता का क्या होगा ? मेरी राय है कि सरकार को हर हमेशा नेताओ के पेट भरने के बजाय गरीब लोगो को शिक्षा, रोजगार और भोजन के साथ-साथ उनसे लगान मे भी छूट दें.
धन्यवाद
लेखक :~वरूण कुमार
कृपया इस पोष्ट पर कमेंट करें,और मेरा भी मनोबल बढ़ाएँ.
लेकिन अब सरकार के संगठन मे भ्रष्टाचारी ,सूदखोरी,हत्या,चोरी-डकैती और संगठन मे सभी का एक मत न होना आदि कि समस्याएँ से भरपूर हैं.जनता से वोट पाने की लालसा हर हमेशा पक्ष-विपक्ष के सरकार से टकराव करते रहते हैं.
सरकार निर्दयीता से गरीब जनता से लगान लेकर नेताओ का पेट भरते हैं.जनता के ऊपर विकाश के लिए नाममात्र का पैसा का वहन करती हैं.पूरे पाँच वर्ष के अवधि तक यही छोटा-सा काम का ढिनढोरा पिटती रहती हैं.नेता लोग देश को खोखला बना के रख दिया हैं.देश मे गरीबो का जंजाल से हमारे मातृभूमि को शर्म से झुका दिया हैं.
नेतालोग सरकार से फंड लेकर अपना पेटी भरने को हर हमेशा आतुर रहती है,ये लोग निर्बल का जमीन हड़पकर,उन्हे बेदखल कर देते है,जिससे हासिया पे गये परिवार कष्टकारी जीवन के जीने के लिए मजबूर होते हैं.उन्हे हर हमेशा दर-दर भटकना पड़ता हैं.उन्हे सरकार से लेकर कानून तक का दरबाजा खटकाना पड़ता है,तब भी उन्हे सफलता नही मिलती हैं.
इन सब का जिम्मेदार कौन है ? क्या यही हमारा समानता का अधिकार है ? गरीबो का मौलिक अधिकार कहाँ गयी ? यह प्रश्न सरकार को क्यो नही सूझता ? क्या इसलिए हमलोग सरकार को चुनते है ? अब इन अपाहिज जनता का क्या होगा ? मेरी राय है कि सरकार को हर हमेशा नेताओ के पेट भरने के बजाय गरीब लोगो को शिक्षा, रोजगार और भोजन के साथ-साथ उनसे लगान मे भी छूट दें.
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लेखक :~वरूण कुमार
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